Tipu Sultan history in Hindi
(Tipu Sultan history in Hindi) टीपू सुल्तान अपने पिता हैदर अली से कद में छोटे थे. उनकी त्वचा का रंग काला था. उनकी आंखें बड़ी-बड़ी थी. वह एक बहुत बहादुर और ताकतवर इंसान थे. वह साधारण और बिना वजन की पोशाक पहनना पसंद करते थे और अपने करीबियों से भी ऐसा करने की उम्मीद रखते थे. उनको अक्सर घोड़े पर सवार देखा जाता था.
Tipu Sultan घोड़ संवारी को एक बहुत बड़ी कला मानते थे और इसमें उन्हें महारथ हासिल थी. उन्हें पालकी पर चलना सख्त ना पसंद था टीपू सुल्तान की शख्सियत की झलक ब्रिटिश लाइब्रेरी में रखि एक किताब और अकाउंट ऑफ टीपू सुल्तान’एस कोर्ट में भी मिलती है. जिसे उनके मुंशी मोहम्मद कासिम ने उनकी मौत के बाद एक अंग्रेज इतिहासकार को दिया था टीपू मझौल कद के थे उनका माथा चोड़ा था. वह सिलीथी आंखों ऊंची नाक और पतली कमर के मालिक थे. उनकी मुछे छोटी थी और दाढ़ी पूरी तरह से कटी हुई थी.
विक्टोरिया एंड अल्बर्ट म्यूजियम लंदन में Tipu Sultan का एक चित्र रखा हुआ है जिसमें वह हरी पगड़ी पहने हुए हैं. जिसमें एक रूबी और मोतियों का सरफेस लगा हुआ है. उन्होंने हरे रंग का जामा पहन रखा है इसमें शेर की धारियां दिखाता कमरबंद लगा हुआ है. उनकी बाहों में एक बेल्ट है जिसमें लाल म्यान के अंदर एक तलवार लटक रही है.14 फरवरी 1799 को जनरल जॉर्ज हैरिस के नेतृत्व में 21000 सैनिकों ने वेल्लोर से मैसूर की तरफ कुच किया 20 मार्च को अंबर के पास करनल बलेसली के नेतृत्व में 16000 और सैनिकों का दल इस सेना में आ मिला था.
Tipu Sultan Summer palace image 1
इसमें कन्नूर के पास जनरल स्टुअर्ट की कमान में 6420 सैनिकों का जथा भी शामिल हो गया था इन सब ने मिलकर Tipu Sultan के श्रीरंगपट्टणम् पर चढ़ाई करदी थी. मशहूर इतिहासकार जेम्स मिल अपनी किताब द हिस्ट्री ऑफ ब्रिटिश इंडिया में लिखते हैं यह वही टीपू सुल्तान थे. जिनके आधे साम्राज्य पर 6 साल पहले अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया था. उनके पास जो जमीन बची थी उससे उन्हें सालाना एक करोड रुपए से थोड़ा अधिक राजस्व मिलता था.
जबकि उस समय भारत में अंग्रेजों का कुल राजस्व 90 लाखपाउंड स्टर्लिंग यानी 9 करोड रुपए था धीरे-धीरे अंग्रेजों ने श्रीरंगपट्टणम् के किले पर घेरा डाला और 3 May 1799 को तोपों से गोलाबारी कर उसकी प्राचीन में एक छेद कर दिया एक और इतिहासकार ऐसार नशईनटन अपनी किताब लाइफ ऑफ हैरिस में लिखते हैं हालांकि छेद इतना बड़ा नहीं था लेकिन तब भी जॉर्ज हैरिस ने उसके अंदर अपने सैनिक भेजने का फैसला किया असल में उनके पास कोई विकल्प भी नहीं था उनकी रसद खत्म हो चुकी थी और उनकी सेना करीब-करीब भुखमरी के कगार पर थी.
बाद में जॉर्ज हैरिस ने कैप्टन मलकाम से खुद स्वीकार किया कि मेरे तंबू पर तैनात अंग्रेज सैनिक खान की कमी और थकान से इतना कमजोर हो चुका था कि अगर आप उसे जरा सा धक्का दे दे तो वह नीचे गिर जाए 3 May की रात करीब 5000 सैनिक इसमें करीब 3000 अंग्रेज थे खाइयो में छुप बैठे थे.
ताकि Tipu Sultan के सैनिकों को उनकी गतिविधि के बारे में पता ना चल सके जैसे ही हमले का समय करीब आया टीपू सुल्तान से दगा करने वाले मीर सादिक ने टीपू के सैनिकों को तन्खाह देने के बहाने पीछे बुला लिया एक और इतिहासकार आमिर हुसैन अली खान किरमानी अपनी किताब हिस्ट्री ऑफ टीपू सुल्तान में करनल मार्क विलस के हवाले से लिखते हैं Tipu Sultan के कमांडर नदीम ने वेतन का मुद्दा उठा दिया था.
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इसलिए प्राचीन के छेद के पास तैनात टीपू के सैनिक उस समय पीछे चले गए थे जब अंग्रेजों ने हमला बोला था इस बीच टीपू के बहुत वफादार कमांडर शाहिद गफ्फार अंग्रेजों की टॉप के गोले से मार दिए गए जैसे ही गफ्फार की मौत हुई किले से गद्दार सैनिकों ने अंग्रेजों की तरफ सफेद रुमाल हिलाने शुरू कर दिया.
यह पहले से तय था कि जब ऐसा किया जाएगा तो अंग्रेज सैनिक किले पर हमला बोल देंगे जैसे ही यह सिग्नल मिला अंग्रेज सैनिकों ने नदी के किनारे की तरफ बढ़ना शुरू कर दिया जो वहां से सिर्फ 100 गज दूर था नदी करीब 280 गज चौड़ी थी इसमें कहीं घुटने तक पानी तो कहीं कमर तक पानी था.
मेजर अलेक्जेंडर एलन अपनी किताब एन अकाउंट ऑफ द कैंपेन इन मैसूर में लिखते हैं. हालांकि किले से अंग्रेजों के बढ़ते हुए सैनिकों को आसानी से तोपों का निशाना बनाया जा सकता था लेकिन तब भी खाइयो से निकल कर कुछ सैनिकों ने मात्र 7 मिनट के अंदर किले की प्राचीन पर तोप से हुए छेद पर ब्रिटिश झंडा फहरा दिया था.
इस क्षेत्र पर कब्जा करने के बाद ब्रिटिश सैनिक दो हिस्सों में बट गए बाई तरफ बढ़ने वाले कॉलम को Tipu Sultan के सैनिकों के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा टीपू के सैनिकों के साथ आमने-सामने की लड़ाई में कॉलम के लीडर करनल डनलप की कलाई पर तलवार के वार से बड़ा घाव हो गया इसके बाद टीपू के सैनिकों ने कॉलम के सैनिकों का आगे बढ़ना रोक दिया.
ऐसा इस वजह से हुआ क्योंकि खुद Tipu Sultan अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए लड़ाई में कूद पड़े डनलप की जगह लेफ्टिनेंट फरकुहाड़ ने ली लेकिन वह भी तुरंत मार दिए गए 4 May की सुबह Tipu Sultan ने अपने घोड़े पर सवार होकर किले की प्राचीन में हुए छेद का निरीक्षण किया और उसकी मरम्मत की निर्देश दिए उसके बाद वो राजमहल में स्नान करने चले गए. किरमानी लिखते हैं कि सुबह ही उनके जोशियां ने उन्हें आगाह कर दिया था कि वह दिन उनके लिए शुभ नहीं है. इसलिए उन्हें शाम तक अपने सैनिकों के पास ही रहना चाहिए स्नान के बाद टीपू ने अपने महल के बाहर इकट्ठा हो गए गरीबों को कुछ पैसे बाते.
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चीना पटना के मुख्य पुजारी को उन्होंने एक हाथी तिल का एक बोरा और 200 रुपए दान दिए दूसरे ब्राह्मणों को टीपू ने काला बैल एक काली बकरी काले कपड़ों से बनी एक पोशाक 90 रुपए और तेल से भरा लोहे का एक बर्तन दान में दिया इससे पहले उन्होंने लोहे के बर्तन में रखे तेल में अपनी परछाई देखी उनके जोशियां ने उन्हें बताया था कि ऐसा करने से उन पर आने वाली विपत्ति तल जाएगी.
फिर Tipu Sultan राजमहल लौटकर रात का खाना खाया उन्होंने अपना खाना शुरू ही किया था कि उन्हें अपने करीबी कमांडर शाहिद गफ्फार की मौत की खबर मिली गफ्फार किले के पश्चिमी छोर की सुरक्षा देख रहे थे. टीपू खबर सुनते ही भोजन के बीच से ही उठ गए उन्होंने हाथ धोएं और घोड़े पर सवार होकर उस जगह चल पड़े जहां किले की प्राचीन पर छेद हुआ था. लेकिन उनके पहुंचने से पहले ही अंग्रेजों ने वहां अपना झंडा फहरा दिया था और अब वह किले के दूसरे इलाकों में बढ़ रहे थे.
इस लड़ाई में Tipu Sultan ने अधिकतर लड़ाई सामान्य सैनिक की तरह पैदल ही लड़ी लेकिन जब उनके सैनिकों का मनोबल गिर गया तब वह घोड़े पर सवार होकर उनकी हिम्मत बढ़ाने की कोशिश करने लगे मार्क व्हील्स लिखते हैं अगर Tipu Sultan चाहते तो वह लड़ाई के मैदान से भाग सकते थे. उस समय किले के कमांडर मीत नदीम किले की गेट की छत पर खड़े हुए थे लेकिन उन्होंने अपने सुल्तान की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया टीपू तब तक घायल हो चुके थे.
जब Tipu Sultan किले के अंदरूनी गेट तरफ बढ़े तब उनके बाएं सीने से एक गोली निकल गई उनका घोड़ा भी मारा गया उनके साथियों ने उनको पालकी पर बैठा कर युद्ध क्षेत्र से बाहर ले जाने की कोशिश की लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाए क्योंकि तब तक वहां कई लाशें बिछ चुकी थी. मेजर अलेक्जेंडर एलन लिखते हैं उस समय उनके बॉडीगार्ड राजा खान उन्हें सलाह दी कि वह अंग्रेजों को अपना परिचय दे दे लेकिन टीपू ने यह सलाह नामंजुर कर दी.
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Tipu Sultan अंग्रेजों के हाथों बंदी बनने के बजाय मौत का रास्ता चुना टीपू सुल्तान के अंतिम समय का वर्णन करते हुए बिनसन लिखते हैं तभी कुछ अंग्रेज सैनिक किले के अंदरुनी गेट पर घुसे उन्होंने टीपू की तलवार की बेलट छीने की कोशिश की तब तक टीपू का काफी खून बह जाने की वजह से वह करीब-करीब बेहोश हो गए थे.
तभी Tipu Sultan अपनी तलवार से उस सैनिक पर वार किया फिर उन्होंने इस तलवार से दूसरे अंग्रेज के सिर पर वार किया वह वही धराशाई हो गया लेकिन तभी वहां पर खड़े अज्ञात अंग्रेज सैनिक ने टीपू पर तलवार से हमला किया उसका उद्देश्य था Tipu Sultan की रत्न जरे तलवार को छीनना उस समय उसको पता नहीं था कि उसने किसी पर तलवार चलाई है. अंग्रेजों को पता नहीं था कि टीपू सुल्तान की मौत हो गई है उनको ढूंढने उनके राजमहल गए वहां उन्हें पता चला कि वह वहां नहीं है.
Tipu Sultan के एक सिपासालार उन्हें उसे जगह ले गया जहां टीपू गिरे थे वहां हर तरफ लाशें और घायल पड़े हुए थे. मशाला की रोशनी में टीपू सुल्तान की पालकी दिखाई दी उसके नीचे टीपू के बॉडीगार्ड राजा खान घायल पड़े थे. उन्होंने उस तरफ इशारा किया जहां टीपू गिरे थे बाद में मेजर अलेक्जेंडर एलन ने लिखा जब टीपू के मृत शरीर को हमारे सामने लाया गया तो उनकी आंखें खुली हुई थी.
उनका शरीर इतना ग्राम था कि कुछ ऋण के लिए मुझे और कर्नल बैलंसली को लगा कि कहीं वह जिंदा तो नहीं है. लेकिन जब हमने उनकी नसे और दिल को छुवा तो हमारे सभी आशंकाएं दूर हो गई उनके शरीर पर चार घाव थे तीन शरीर पर और एक माथे पर एक गोली उनके दाहिने कान में घुसकर उनके बाएं गाल में फंस गई थीउन्होंने बेहतरीन सफेद लिनन का जामा पहन रखा था.
जिसकी कमर के आसपास सिल्क के कपड़े से सिलाई की गई थी उनके सिर पर पगरी नहीं था और लगता था की लड़ाई की आपा धापि में वह नीचे गिर गया था. उनके जिस्म पर कोई भी आभूषण नहीं था शिवाय एक बाजूबंद के यह बाजूबंद वास्तव में एक चांदी की ताबीज थी इसके अंदर अरबी और फारसी भाषा में कुछ लिखा हुआ था.
शरीर को उन्हीं की पालकी में रखने का आदेश दिया और दरबार को सूचना भेजवाई गई की टीपू सुल्तान अब इस दुनिया में नहीं रहे उनका पार्थिव शरीर पूरी रात उनके ही दरबार में रखा गया अगले दिन शाम को राजमहल से टीपू सुल्तान की शव यात्रा शुरू हुई उनके जनाजे को उनके निजी सहायकों ने उठा रखा था.
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उसके साथ अंग्रेजों की चार कंपनियां चल रही थी नेशनल लाइब्रेरी ऑफिस स्कॉटलैंड में रखे दस्तावेज जरनल द वॉर ऑफ़ टीपू में लिखा गया है उनके जनाजे के ठीक पीछे शहजादा अब्दुल खालिल चल रहे थे. उसके बाद थे दरबार के मुख्य अधिकारी जिन सड़कों से जनाजा गुजरा उसके दोनों तरफ लोग खड़े हुए थे.
वह लोग जमीन पर लेट कर जनाजे के लिए अपना सम्मान प्रकट कर रहे थे. और जोर-जोर से रो रहे थे. उनके पार्थिव शरीर को लाल बाग में हैदर अली की कब्र के बगल में दफनाया गया उसके बाद उन लोगों में 5000 रुपए बांटे गए जो टीपू सुल्तान के जनाजे में शामिल हुए थे.
रात होते-होते माहौल और गम जदा हो गया जब बादलों की गड़ गड़ाहट के साथ जबरदस्त आंधी आई उस आंधी में दो अंग्रेज अफसर मारे गए और कई सैनिक घायल हो गए टीपू के मरने के बाद अंग्रेज सैनिकों ने श्रीरंगपट्टणम् में जबरदस्त लूट मचाई लेकिन फिर भी टीपू का सिंहासन हाथी पर बैठने का चांदी का होदा सोने और चांदी से बनी प्लेटें जवाहरातों से जड़े ताले और तलवारों महंगी कालीनों और सिल्क के बेहतरीन कपड़ों और रतन से भरे करीब 20 बक्से आम सैनिकों के हाथ नहीं लगी.
टीपू की बेहतरीन लाइब्रेरी को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचा इसमें इतिहास विज्ञान और हदीस से संबंधित अरबी फारसी उर्दू और हिंदी भाषा में 2000 से अधिक किताबें थी.
अंग्रेज सेना की तरफ से एक हीरे का तारा और टीपू की एक तलवार बैलंसली को को भेंट की गई मेजर अलेक्जेंडर एलन ने अपनी किताब इन अकाउंट ऑफ द कैंपेन इन मैसूर में लिखा हैरिस ने टीपू की एक और तलवार डेविड बेयर्ड को भेंट की गई और सुल्तान की सिंहासन में चढ़ी पाक के सर को विंडसार्क कौशल के हंसने में भेज दिया क्या टीपू सुल्तान और मुरारी राव की एक-एक तलवारे लार्ड कार्नवालिस के पास यादगार के तौर पर भेजी गई तब तक अंग्रेजों के सामने टीपू से बड़ा प्रतिद्वंद्वी सामने नहीं आया था.
उनके बाद अंग्रेजों के युद्ध कौशल को चुनौती देने वाला कोई नहीं बचा था एक अंग्रेज पत्रकार पीटर ओबर ने अपनी किताब राइस एंड प्रोग्रेस आफ ब्रिटिश पावर इन इंडिया में लिखा कि टीपू की हार के बाद पूर्व का पूरा साम्राज्य हमारे पैरों पर आगीरा.
Tipu Sultan की यह तलवार अब तक की सबसे महंगी बिकने वाली भारतीय वस्तु है.
18वीं सदी के मैसूर के शासक टीपू सुल्तान की तलवार ने ब्रिटेन में नीलामी का रिकॉर्ड बना दिया है. टीपू सुल्तान की यह तलवार 1.4 करोड़ पाउंड (लगभग 140 करोड़ रुपये) में नीलाम हुई है.
यह तलवार टीपू सुल्तान के निजी कमरे से मिली थी. इस तलवार को ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने मेजर जनरल डेविड बेयर्ड को पेश की गई थी. नीलामी का आयोजन करने वाले बोनहम्स ने कहा कि यह तलवार उम्मीद से कई गुना अधिक बिकी है. Tipu Sultan की तलवार नीलामी के सभी रिकॉर्ड तोड़ते हुए अब तक की सबसे महंगी बिकने वाली भारतीय वस्तु बनी है.
यह तलवार टीपू सुल्तान से जुड़े सभी हथियारों में बहुत अहमियत रखती है. Tipu Sultan का इससे गहरा जुड़ाव था. यह उनके निजी कक्ष से मिली थी. टीपू सुल्तान की तलवार को ‘सुखेला’ यानी सत्ता का प्रतीक कहा जाता है. यह तलवान स्टील से बनी है और इस पर सोने से बेहतरीन नक्काशी की गई है.
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