Sperm: यानी शुक्राणु इजेकुलेशन के बाद इन्हें सिर्फ 20 सेंटीमीटर की दौड़ लगाने के दौरान किस तरह की मुसीबत का सामना करना पड़ता है! औरतों के शरीर में एक बार में सिर्फ एक ही अंडा बनता है, लेकिन पुरुषों के साथ ऐसा नहीं होता जब वह इजेकुलेट करते हैं, तो एक बारी में लाखों स्पर्म निकलते हैं, लेकिन बच्चा कंसीव करने के लिए इन लाखों में से सिर्फ एक स्पर्म की जरूरत होती है, शायद इसीलिए लोग अपने बच्चों को लाखों में एक कहते हैं।
अब जानते हैं, कि अंडा फर्टिलाइजर कैसे होता है। Sperm यानी शुक्राणु इजेकुलेशन के बाद इन्हें एक बहुत लंबी रेस में हिस्सा लेना होता है। वैसे तो दौड़ सिर्फ 20 सेंटीमीटर की ही लगनी है, लेकिन इस छोटे से स्पर्म के लिए यह वैसा ही है जैसा आपके लिए 500 किलोमीटर पैदल चलना यानी खूब मेहनत का काम बहुत से स्पर्म तो योनि के अंदर जिंदा रह ही नहीं पाते क्योंकि यह एसिडिक होती है।
इसके अलावा इम्यून सिस्टम कीटाणु समझ कर इनकी जान लेने लगता है। यानी इस सिलेक्शन प्रोसेस के अगले राउंड में वही पहुंच पाता है, जो Healthy Sperm है। यहां स्पर्म अपनी मंजिल की तरफ बढ़ रहे होते हैं, और वहां अंडा फैलोपियन ट्यूब से नीचे आना शुरू करता है।
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सेक्स के दौरान जब महिला को आर्गनिज्म होता है, तो वजाइना यूट्रस और सरविक्स तीनों एक साथ कॉन्ट्रैक्ट होने लगते हैं। इसका मकसद होता है, स्पर्म को आसानी से अंदर धकेलना जब तक यह कांट्रेक्शन चलता है, स्पर्म बिना मेहनत के तैरते रहते हैं। पर जैसे ही रूकता है, इन्हें अपनी मोटर ऑन कर बिना किसी मदद के खुद ही आगे बढ़ना पड़ता है।
इजेकुलेट यूं तो चिपचिपा होता है, लेकिन यूट्रस के अंदर पहुंचकर इसकी चिपचिपाहट कम हो जाती है। जिससे शुक्राणुओं के लिए तैरना आसान बन जाता है, और फिर यूटरस की दीवारें रास्ता दिखाने में मदद भी करती है। रिसर्च अब तक इस बात का पता नहीं लगा पाई है, कि फैलोपियन ट्यूब कैसे यह संदेश भेजती है, कि अंडा नीचे की ओर आ रहा है, लेकिन इतना जरूर पता है, कि फैलोपियन ट्यूब की सतह पर छोटे-छोटे बाल जैसे फिलामेंट होते हैं। यह मिलकर अंडा को धकेलते हैं, ताकि वह Sperm के पास पहुंच सके।
हर किसी की कोशिश होती है कि वह सबसे पहले Egg तक पहुंच जाए यानी आम जिंदगी में किसी लड़की को इंप्रेस करने के लिए जिस तरह से लड़कों के बीच में कंपटीशन चल रहा होता है। शरीर के अंदर भी वैसा ही कुछ हो रहा होता है, और जहां तक बात लड़की को इंप्रेस करने की है, तो ऐसा सिर्फ इंसान ही नहीं करते हैं। कुदरत ने लगभग हर जानवर हर परिंदे को ऐसा ही बनाया है, कि नर को मादा के करीब जाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ता है।
खैर इस पर किसी और दिन बात करेंगे फिलहाल देखते हैं कि स्पर्म कहां तक पहुंचा है वैसे कई Sperm तो रास्ता भटक जाते है, और फैलोपियन ट्यूब में ही अटैक कर रह जाते हैं। इस दौरान अंडा प्रोस्टाग्लैंडिस नाम का एक केमिकल रिलीज करता है। यह केमिकल स्पर्म को सही रास्ता दिखाने का काम करता है। अब मंजिल ज्यादा दूर नहीं है। अंडे की सतह पर ग्लाइको प्रोटीन होते हैं।
Sperm को बस वही खुद को अंडा से जोड़ लेना है, और अब आखरी काम बचा है। पूरा जोर लगाकर सर अंडा के अंदर घुसाना है, और पूछ को वहीं बाहर ही छोड़ देना है। जैसे ही कोई Sperm यह करने में कामयाब होता है, अंडा अपनी बाहरी परत को सील कर देता है। यानी रेस खत्म सेकंड थर्ड फोर्थ पोजीशन पर आने वालों का यहां कोई काम नहीं है।
Sperm: यानी शुक्राणु इजेकुलेशन के बाद इन्हें सिर्फ 20 सेंटीमीटर की दौड़ लगाने के दौरान किस तरह की मुसीबत का सामना करना पड़ता है! यह हम जान चुके!
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