Pushtaini zameen dhoke se kabza ya apne naam kar li gayi hai. | ऐसे मामलों में भारतीय कानून क्या कहता है,

अगर पुश्तैनी ज़मीन बेचकर उसी पैसे से दूसरी जगह ज़मीन खरीदी गई है, और वो ज़मीन सिर्फ एक भाई के नाम कर दी गई है, तो बाकी भाइयों का उस नई ज़मीन में हक बन सकता है, क्योंकि वह पैसा सभी भाइयों का था जो पुश्तैनी संपत्ति बेचकर आया था। इस स्थिति में कुछ खास क़ानूनी प्रावधान और एक्ट हैं जो इस मामले में मददगार साबित हो सकते हैं। भारत में पुश्तैनी संपत्ति और विरासत के मामले में ये क़ानून लागू होते हैं, खासकर अगर संपत्ति को “ancestral” (पुश्तैनी) या “joint family property” (संयुक्त परिवार की संपत्ति) माना जाए।

1. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (Hindu Succession Act, 1956)

अगर आप हिंदू परिवार से हैं, तो हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत कुछ प्रावधान लागू होते हैं। इसके अंतर्गत:

पुश्तैनी संपत्ति: जो ज़मीन विरासत में मिली हो (पुश्तैनी संपत्ति), वो सभी वारिसों के बीच बांटी जाती है। इसे “coparcenary property” कहा जाता है और इसका हक सभी coparcener (वारिसों) को मिलता है।

कॉपार्सेनरी अधिकार: इस अधिनियम के अनुसार, सभी कॉपार्सेनर्स (वारिस) को पुश्तैनी संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलता है। अगर इस संपत्ति को बेचकर नई संपत्ति खरीदी गई है, तो नए ज़मीन में भी सभी का बराबर का हक बनता है।

पार्टिशन सूट (Partition Suit): अगर एक कॉपार्सेनर (भाई) ने पूरी संपत्ति अपने नाम करवाई हो, तो बाकी वारिस सिविल कोर्ट में पार्टिशन सूट दाखिल कर सकते हैं ताकि वह संपत्ति उनके बीच बाँटी जा सके।

2. भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 (Indian Succession Act, 1925)

अगर आप मुस्लिम, ईसाई या किसी अन्य धर्म से संबंधित हैं, तो भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 लागू होता है। यह अधिनियम संपत्ति के उत्तराधिकार और वितरण का प्रावधान करता है:

समान हिस्से का अधिकार: यह अधिनियम सुनिश्चित करता है कि हर एक वारिस को पुश्तैनी संपत्ति में समान या उचित हिस्सा मिलना चाहिए।

पुश्तैनी संपत्ति के बिक्री से प्राप्त धन: अगर किसी पुश्तैनी संपत्ति को बेच दिया गया है और नए ज़मीन या संपत्ति में निवेश किया गया है, तो वह संपत्ति भी सभी वारिसों का हक मानी जाएगी।

3. संपत्ति का स्थानांतरण अधिनियम, 1882 (Transfer of Property Act, 1882)

अगर पुश्तैनी संपत्ति को बिना सभी वारिसों की सहमति के बेचा गया है और नई ज़मीन को सिर्फ एक भाई के नाम पर करवाई गई है, तो आप इस अधिनियम के तहत इस ट्रांसफर को चुनौती दे सकते हैं।

यह अधिनियम कहता है कि किसी भी संयुक्त परिवार की संपत्ति को किसी एक वारिस के नाम पर कानूनी रूप से तब तक ट्रांसफर नहीं किया जा सकता जब तक सभी वारिस इस पर सहमत न हों।

4. बेनामी लेनदेन (प्रतिबंध) अधिनियम, 1988 (Benami Transactions (Prohibition) Act, 1988)

अगर एक भाई ने पुरानी संपत्ति के पैसे का उपयोग करके नई ज़मीन अपने नाम पर खरीदी है और दावा कर रहा है कि यह उनकी निजी संपत्ति है, तो बाकी भाई इस लेन-देन को चुनौती दे सकते हैं।

इस अधिनियम के अनुसार, अगर कोई संपत्ति किसी और के नाम पर रखी गई है लेकिन वह संयुक्त परिवार के पैसे से खरीदी गई है, तो उसे बेनामी संपत्ति माना जाएगा और उस पर सभी का हक बनता है।

5. सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (Partition Suit under Civil Procedure Code, 1908, Order XX, Rule 18)

पार्टिशन सूट: आप “पार्टिशन सूट” सिविल कोर्ट में दाखिल कर सकते हैं। पार्टिशन सूट उस मुकदमे को कहते हैं जो संपत्ति को उसके हकदारों के बीच बांटने के लिए दायर किया जाता है।

अगर संपत्ति को विरासत में विभाजित करना हो और किसी एक व्यक्ति ने उस पर कब्जा कर रखा हो, तो अदालत के माध्यम से पार्टिशन सूट के ज़रिए उस संपत्ति का विभाजन करवाना संभव होता है।

कानूनी प्रक्रिया और सबूत का महत्व

किसी भी अदालत के मामले में सबूत और दस्तावेज़ की ज़रूरत होती है। अगर आप यह साबित कर सकते हैं कि नई ज़मीन का पैसा पुश्तैनी संपत्ति को बेचने से आया था, तो आपका मामला और भी मजबूत हो सकता है। इसके लिए कुछ ज़रूरी दस्तावेज़ और सबूत की आवश्यकता होती है:

  • पुश्तैनी ज़मीन की बिक्री दस्तावेज़
  • बैंक स्टेटमेंट्स (जो दिखाएं कि पैसा पुरानी ज़मीन बेचकर आया था)
  • परिवार के गवाह के बयान (जो यह साबित करें कि नई ज़मीन सभी भाइयों के लिए खरीदी गई थी)
  • नई संपत्ति का बिक्री अनुबंध (जो यह दिखाए कि पैसा किस स्रोत से आया है)

कानूनी सलाह लेना ज़रूरी है

किसी family property dispute specialist वकील से सलाह लें। यह वकील आपकी मदद कर सकते हैं कि किस तरह के दस्तावेज़ और सबूत जुटाए जाएं और कौन से अधिनियम के तहत आपका मामला और भी मजबूत किया जा सकता है।

अगर अदालत में यह साबित हो जाए कि नई संपत्ति का पैसा पुश्तैनी ज़मीन से आया था, तो उस संपत्ति में सभी वारिसों का बराबर का हिस्सा बनता है और अदालत उस संपत्ति को सभी में बाँट सकती है।

अगर पुश्तैनी जमीन को किसी एक वारिस ने बिना सभी कानूनी हकदारों की सहमति के बेच दिया है, तो आप उस रजिस्ट्री को चुनौती देकर रद्द करवा सकते हैं। ऐसा करने के लिए भारत में कुछ क़ानूनी प्रक्रियाएं मौजूद हैं, जिनका पालन किया जा सकता है:

1. सिविल कोर्ट में रजिस्ट्री को चुनौती देना

सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (Civil Procedure Code, 1908) के तहत, आप संपत्ति की रजिस्ट्री को अवैध घोषित करने के लिए एक पार्टिशन सूट (Partition Suit) दायर कर सकते हैं। इसमें आप साबित करेंगे कि संपत्ति पुश्तैनी है और इसे बिना सभी कानूनी वारिसों की सहमति के बेचा गया है।

धारा 31, विशेष राहत अधिनियम, 1963 (Section 31, Specific Relief Act, 1963) के तहत अदालत में यह साबित किया जा सकता है कि रजिस्ट्री अवैध है। अदालत तब रजिस्ट्री को रद्द करने का आदेश दे सकती है अगर यह सिद्ध हो जाए कि बिक्री सभी वारिसों की सहमति के बिना हुई थी।

2. बेनामी लेनदेन (प्रतिबंध) अधिनियम, 1988

बेनामी लेनदेन (प्रतिबंध) अधिनियम का उपयोग तब किया जा सकता है जब यह साबित किया जा सके कि एक वारिस ने अन्य कानूनी हकदारों को धोखे में रखकर संपत्ति बेची है। यदि इस अधिनियम के तहत संपत्ति का हस्तांतरण अवैध सिद्ध होता है, तो इसे रद्द किया जा सकता है।

3. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (Hindu Succession Act, 1956)

हिंदू कानून के तहत, पुश्तैनी संपत्ति सभी कानूनी वारिसों का अधिकार है। यदि इसे किसी एक वारिस ने बेचा है, तो अन्य वारिस अदालत में जाकर पार्टीशन क्लेम (Partition Claim) दायर कर सकते हैं और अदालत से उस बिक्री को अवैध घोषित करने की मांग कर सकते हैं।

4. स्टे ऑर्डर और अस्थायी निषेधाज्ञा (Temporary Injunction)

संपत्ति के हस्तांतरण को रोकने के लिए अस्थायी निषेधाज्ञा या स्टे ऑर्डर का आवेदन किया जा सकता है ताकि संपत्ति अन्य पक्षों को ना बेची जा सके। ऑर्डर 39, रूल 1 और 2 के तहत, अदालत रजिस्ट्री पर रोक लगा सकती है जब तक कि मामला सुलझ नहीं जाता।

5. दस्तावेज और सबूत की भूमिका

  • अदालत में साबित करने के लिए कि संपत्ति पुश्तैनी है और बिक्री अवैध है, कुछ प्रमुख दस्तावेज़ों की आवश्यकता होगी:
  • वंशावली प्रमाणपत्र (Genealogy Certificate) – जो साबित करे कि आप कानूनी हकदार हैं।
  • पुश्तैनी संपत्ति के दस्तावेज़ – संपत्ति की वैधता को साबित करने के लिए।
  • संपत्ति की रजिस्ट्री और बिक्री समझौता – जो यह दिखाए कि इसे किस आधार पर बेचा गया है।
Pushtaini zameen dhoke se kabza ya apne naam kar li gayi hai. | ऐसे मामलों में भारतीय कानून क्या कहता है, उम्मीद करता हूं आपको समझ में आ गया होगा अपने हक के लिए लड़ना और अपने हक के लिए खड़ा होना सीखे!

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