(Biography of Rabindranath Tagore | रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी!) वह दुनिया के अकेले ऐसे कवि हैं. जिन्होंने दो देशों के राष्ट्रगीत लिखे हैं. भारत का (जन-गण-मन) और बांग्लादेश का अमार शोनार बांग्ला (मेरा सोने का बंगाल या मेरा सोने जैसा बंगाल), बांग्लादेश का राष्ट्रगान है, जिसे रवींद्र नाथ टैगोर ने इसे बंग-भंग के समय सन 1906 में लिखा था.
श्रीलंका के राष्ट्रगान पर भी उनकी छाप दिखाई देती है. वैसे इस राष्टगान की शब्द और संगीत रचना श्री आनंद समाराकून ने सन 1940 में की थी. सन 1951 में इसे आधिकारिक रूप से श्रीलंका के राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया श्री आनंद समाराकून यह गीत तब लिखें जब वह विश्व भारती में Rabindranath Tagore के शिष्य थे.
Biography of Rabindranath Tagore | रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी!
जन-गण-मन की रचना 1911 में हुई थी और इसे पहली बार 27 दिसंबर 1911 को पहली बार जन-गण-मन को सार्वजनिक मंच पर गाया गया था. राष्ट्रगान को पहली बार कलकत्ता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 27 में सत्र के अधिवेशन में गाया गया था, लेकिन उस समय इसे राष्ट्रगान घोषित नहीं किया गया था. कांग्रेस अधिवेशन में जन-गण-मन को रविंद्रनाथ Rabindranath Tagore की भांजी ने गाया था.
नेत्रप्रिया घोष अपनी किताब (Rabindranath Tagore A Pictorial Biography) में लिखते हैं. रविंद्र नाथ के एक मित्र ने उनसे सम्राट जार्ज पंचम के दिल्ली दरबार के मौके पर उनके सम्मान में एक गीत लिखने का आग्रह किया था, उस आग्रह को ठुकराते हुए टैगोर ने किसी अंग्रेज राजा नहीं बल्कि सभी व्यक्तियों के हृदय पर राज करने वाली शक्ति के सम्मान में यह गीत लिखा था. एंग्लो इंडियन प्रेस की पैदा की हुई अफवाह की उम्र काफी लंबी निकली कि यह गीत सम्राट जार्ज पंचम का स्वागत गीत है.
अंग्रेज कवित्री यात्रा पाउंड ने अपने पिता को लिखे पत्र में इस बात की हंसी भी उड़ाई थी, कि यूबीएस ने इस अफवाह को सही मान लिया था आज भी लोग Rabindranath Tagore के देश प्रेम पर सवाल उठाने के लिए इस कथित स्वागत गीत का उल्लेख कर देते हैं. 7 May 1861 को जब रविंद्र नाथ टैगोर का जन्म हुआ तो कोलकाता में ना तो बिजली थी ना पेट्रोल ना भूमिगत सीमित व्यवस्था और ना पीने के लिए पानी का नल
Rabindranath Tagore का जन्म से 4 साल पहले ही इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया ने एक घोषणा पत्र के जरिए भारत का प्रशासन ईस्ट इंडिया कंपनी से छीन लिया था. उनके पूर्वज मुलाकात जयसुर के थे, जो की अब बांग्लादेश में है.
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उनके आस पास के लोग उनका बहुत सम्मान करते थे, और उन्हें ठाकुर कहकर पुकारते थे, यही ठाकुर अंग्रेजी भाषा में बाद में Rabindranath Tagore हो गया टैगोर की प्रारंभिक शिक्षा घर पर हुई 17 साल की उम्र में वह कानून की शिक्षा लेने ब्रिटेन गए लेकिन डिग्री लिए बगैर ही भारत वापस लौट आए 20 वर्ष की आयु तक Rabindranath Tagore की व्याति चारों ओर फैलने लगी थी. टैगोर अपनी आत्मकथा जीवन स्मृति में लिखते हैं.
जब रमेश चंद्र दत्त की सबसे बड़ी लड़की के विवाह समारोह में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय पहुंचे तो रमेश चंद्र ने उन्हें आगे बढ़कर माला पहना दी उसी समय मैं भी वहाँ पहुंच गया. बंकिम चंद्र ने वो माला तुरंत अपने गले से निकाली और मेरे गले में ये कहते हुए पहना दी कि मैं इसका ज़्यादा हक़दार हूँ. फिर उन्होंने रमेश दास से पूछा कि उन्होंने मेरी किताब शांत संगीत पड़ी है, या नहीं जब दत्त ने कहा नहीं, तो बंकिम चंद्र ने उसकी तारीफ़ के पुल बाँध दिए, मेरे लिए इससे बड़ा पुरस्कार क्या हो सकता था.
Rabindranath Tagore ने वर्ष 1907 से 1910 के बीच गीतांजलि की कविताएं लिखी सियालदह में पद्मा नदी के तट पर उन्होंने गीतांजलि की कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद किया जब वह 27 May 1912 को इंग्लैंड के लिए समुद्री जहाज से रवाना हुए तो अपने साथ अपनी कविताओं का अंग्रेज़ी अनुवाद भी ले गए रविंद्र नाथ अपनी आत्मकथा (My Life in My Words) में लिखते हैं.
लंदन पहुंचकर मैंने यह कविताएं पढ़ने के लिए चित्रकार विलियम ब्रोकनस्टीन को देदी जिनसे मैं 1911 में कोलकाता में मिल चुका था, प्रोटेस्टिन ने वह कविताएं पढ़ने के लिए मशहूर कवि डब्लू बी यीट्स को देदी यीट्स ने एक शाम को कविताएं अपनी जाने वाले कवियों के बीच पढ़ी उन लोगों ने कविताओं के संकलन को इंडियन सोसाइटी ऑफ लंदन द्वारा छपवाने का फैसला किया.
यीट्स ने इन कविताओं का प्रक्राथन लिखा इस तरह 1912 में गीतांजलि का सबसे पहले लंदन में प्रशासन हुआ नोबेल पुरस्कार पाने की खबर मुझे 14 नवंबर 1913 को शांति निकेतन में मिली नायडू ने टैगोर जन्म शक्ति 1961 में प्रकाशित स्मारिका में लिखा जब गीतांजलि प्रकाशित हुई उसे समय मैं सहयोग से इंग्लैंड में ही थी.
Rabindranath Tagore पारिवारिक विवरण!
वहां जब महान आयरिश कवि विलियम बटलर ग्रेड्स ने गीतांजलि का अंग्रेज़ी अनुवाद पढ़ा तो वह जैसे पागल हो गए बिल्कुल पागल जब 1913 में बहुत सुंदर सी दाढ़ी लंबे लच्छेदार बलों और लंबे चौबे में Rabindranath Tagore इंग्लैंड आए तो ठंडे पड़े पूरे इंग्लैंड में उनके गीतों के सूर्य से जैसे जान आ गई मैंने एक ऐसा दृश्य भी देखा कि एक बस में एक तरफ बैठी पांच बुजुर्ग महिलाओं के हाथों में गीतांजलि थी, और वह उसे पढ़ रही थी.
13 अप्रैल 1919 को जनरल डायर ने जलियांवाला बाग में फायरिंग का आदेश दिया इस फायरिंग में आधिकारिक तौर पर 379 लोग मारे गए रविंद्र नाथ टैगोर ने वायसराय जेम्स फोर्ट को पत्र लिखकर उन्हें ब्रिटिश सम्राट द्वारा 1915 में दी गई नाइट की उपाधि छोड़ने की घोषणा की जेम्स फोर्ट की समझ में नहीं आया कि वह इस घोषणा से कैसे निपटें भारत में ब्रिटिश प्रेस ने Rabindranath Tagore के प्रस्ताव को सम्राट का अपमान मानते हुए उग्र प्रतिक्रिया की जबकि भाषाही अखबारों का रवैया भी उनके प्रति बहुत सम्मानजनक नहीं था.
Rabindranath Tagore ईश्वर के रूप में देश की पूजा किए जाने के सख्त आलोचक थे. वह आधुनिक राष्ट्रों द्वारा किए गए अपराधों से भी काफी शुद्ध थे, लेकिन इसके बावजूद उस धरती के प्रति उनका प्यार किसी से काम नहीं था. जहां वह पैदा हुए थे, उन्होंने देशभक्ति और राष्ट्रवाद के बीच स्पष्ट भेद किया था.
उन्होंने अपने देश से प्रेम करने की बात जरूर कही थी, लेकिन किसी दूसरे देश को शत्रु मानते हुए नहीं पहले विश्व युद्ध ने टैगोर को दृढ़ता से आक्रामक राष्ट्रवाद के खिलाफ खड़ा कर दिया और इस विषय पर उनके भाषणों ने अमेरिका इटली और हंगरी में उनके मित्रों को भी उनका शत्रु बना दिया.
वह उपनिवेशवाद के हमेशा विरोधी रहे ऐसे समय एवं उनके बहुत से साथी आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे. Rabindranath Tagore दिमाग की आजादी की बात कर रहे थे. टैगोर दिखाना चाहते थे, कि राजनीतिक आजादी का तब तक कोई मतलब नहीं है, जब तक लोग मानसिक गुलामी से अपने आप को आजाद नहीं कर लेते Rabindranath Tagore की कविता शायद पूरे भारत के स्कूलों के पाठ्यक्रम में है.जान जहां मुख है. 1901 में लिखी इस कविता का अंत देश की आजादी के आवाहन से होता है. भारत को आजादी Rabindranath Tagore के देहांत के 6 साल बाद मिली थी.
Rabindranath Tagore 1924 में अर्जेंटीना गए जहां वह दो महीना तक विक्टोरिया और कैंपों के मेहमान बनकर रहे उन्होंने अपने एक मित्र के यहां उनके रूकने का इंतजाम करवाया इस दौरान Rabindranath Tagore ने 22 कविताएं लिखी यह थोड़ी असामान्य सी बात थी, टैगोर ने एक बार अजीत चक्रवर्ती से कहा था, जब भी वह पश्चिमी परिधान पहनते हैं सरस्वती उनके साथ छोड़ जाती है. वह विदेशी कपड़ों में अपनी मातृभाषा में नहीं लिख पाते.
ओकैंपों टैगोर के साथ संबंधों के कई स्तरों से होकर गुजरी बाद में उन्होंने अपनी किताब (Tagore on the banks of the river Plate) में लिखा थोड़ा-थोड़ा करके उन्होंने युवा जानवर को पालतू बना लिया कभी उग्र तो कभी एकदम शांत उनके दरवाजे के बाहर किसी कुत्ते की तरह जो कभी सोता भी नहीं था. Rabindranath Tagore ने वह ओकैंपों को लिखे पत्र में उनकी मेजबानी के लिए कम आभार प्रदर्शित करने की व्याख्या करते हुए लिखा मेरा बाजार भाव ऊंचा हो गया है और मेरा निजी मूल्य पीछे रह गया है.
इस निजी मूल्य को पाने की तीव्र इच्छा मेरा पीछा करती आई है, इसे केवल किसी स्त्री के प्रेम से पाया जा सकता है, और मैं काफी समय से जो उम्मीद लगाए हूं कि मैं यह पाने योग्य हूं, मित्र प्रिय घोष लिखते हैं. कवि के आराम और सुविधाओं का बहुत ज्यादा ख्याल रखने वाली ओकैंपों ने कवि के केबिन में एक सोफ़ा रखवाने के लिए उस जहाज के कप्तान को केबिन का दरवाजा हटवाने के लिए मनवा लिया था जिससे वह अर्जेंटीना से यूरोप आने वाले थे, इस सोफे को बाद में शांति निकेतन लाया गया और कवि इसका इस्तेमाल अपने आखिरी दिनों तक करते रहे.
रवीन्द्रनाथ टैगोर और महात्मा गांधी के बीच एक जटिल रिश्ता क्यों था!
Rabindranath Tagore और गांधी एक ही दशक में पैदा हुए थे, टैगोर 1861 में और गांधी 1869 में टैगोर ने ही गांधी को महात्मा का नाम दिया था, गांधी भी टैगोर को हमेशा गुरुदेव कह कर पुकारते थे, कई मुद्दों पर मतभेद होने के बावजूद दोनों एक दूसरे का बहुत सम्मान करते थे, हालाँकि दोनों भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में प्रभावशाली व्यक्ति थे, लेकिन कुछ मुद्दों पर उनके विचार अलग-अलग थे.
खासकर स्वतंत्रता प्राप्त करने के दृष्टिकोण के संबंध में। टैगोर ने शुरू में गांधीजी के असहयोग आंदोलन का समर्थन किया था, लेकिन बाद में सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन प्राप्त करने के लिए अधिक सूक्ष्म दृष्टिकोण में विश्वास करते हुए इसके आलोचक बन गए। अपने मतभेदों के बावजूद, उन्होंने भारतीय समाज और संस्कृति में एक-दूसरे के योगदान के लिए परस्पर सम्मान बनाए रखा. उनकी बातचीत और विचारों के आदान-प्रदान ने भारतीय इतिहास और दर्शन पर स्थायी प्रभाव छोड़ा है.
Rabindranath Tagore ने 1921 में गांधी की खिलाफत रणनीति की कड़े शब्दों में निंदा की थी, टैगोर ने गांधी की उस बात का भी मजाक उड़ाया था, कि अगर देश में सभी लोग चरखे पर सूट बांटना शुरु कर दें तो वह साल भर में देश में स्वराज स्थापित कर देंगे एक बार जब गांधी ने बिहार में आए भूकंप को छुआछूत के पापियों को ऐश्वर्या दंड की संज्ञा दी थी, तो Rabindranath Tagore ने एक सार्वजनिक बयान जारी कर कहा था, कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है, कि गांधी किसी प्राकृतिक आपदा को ईश्वरीय अप्रसंता की अभिव्यक्ति के रूप में देख रहे हैं.
Rabindranath Tagore photo
खासकर उसे समय जब भारतीयों का बहुत बड़ा हिस्सा उनकी बात को बिना सवाल स्वीकार कर लेता है. केवल अपनी दैनिक जीवन शैली में ही नहीं अपने-अपने सामाजिक और राजनीतिक विश्वासों में भी गांधी और Rabindranath Tagore दो अलग-अलग ध्रुव थे, लेकिन फिर भी गांधी ने टैगोर की बातों को श्रद्धापूर्वक सुना कभी नहीं छोड़ा दोनों के बीच अंतर बढ़ते रहे क्योंकि Rabindranath Tagore विश्व भारती और देश की सीमाओं से आगे जाने वाले मानवतावाद में विश्वास रखते थे.
मशहूर चित्रकार और लेखिका रानी चंदा ने अपनी किताब अलबचारी रविंद्र नाथ में लिखा मुझे 15 जनवरी 1938 को बहुत पीड़ा हुई जब मैंने देखा कि गुरुदेव अपने लंबे घुंघराले बालों को काट रहे हैं. जब मैंने सुंदर बालों को काटने का विरोध किया तो रविंद्र ने कहा मैं अपने सर का बोझ उतारने के लिए इन बालों को काट रहा हूं, फिर देखो तो सही मेरे सिर की बनावट भी खराब नहीं है, क्या कि मुझे इस थकना पड़े क्या कहती हो.
अक्टूबर 1937 में जब Rabindranath Tagore एक मेडिकल जांच के लिए कोलकाता के बाहरी इलाके में प्रशांत महालनोबिस के घर पर रुके और वहां से शरद चंद्र बोस के घर पर आए तो गांधी उनसे मिलने कार से निकले रास्ते में गांधी कार में ही बेहोश हो गए इस बात की खबर जब टैगोर को मिली तो वह गांधी को देखने के लिए बेचैन हो गए गांधी को शरद के मकान की सबसे ऊपरी मंजिल में रखा गया था.
वहां तक ले जाने के लिए 49 वर्षीय जवाहरलाल नेहरू 40 वर्ष के सुभाष बोस 48 वर्ष के शरद और 45 वर्ष के महादेव देसाई ने टैगोर को एक कुर्सी पर बैठाया और उसे उठाकर गांधी से मिलाने ऊपर ले गए लंबी बीमारी के बाद 7 अगस्त 1941 को गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर ने अंतिम अंतिम सांस ली.
Rabindranath Tagore ने अनेक कविताएँ लिखीं। यहां उनके कुछ प्रसिद्ध संग्रह और व्यक्तिगत कविताएं हैं!
1. गीतांजलि (गीत प्रस्तुति): इस संग्रह ने उन्हें 1913 में साहित्य में नोबेल पुरस्कार दिलाया।
2. काबुलीवाला: एक दिल छू लेने वाली कहानी बाद में फिल्मों और नाटकों में रूपांतरित हुई।
3. चित्रा: एक काव्यात्मक नाटक जो प्रेम और पहचान की जटिलताओं का पता लगाता है।
4. द क्रिसेंट मून: बचपन की मासूमियत और आश्चर्य को प्रतिबिंबित करने वाली कविताओं का संग्रह।
5. द गार्डेनर: कविताओं का एक और संग्रह जो प्रकृति, प्रेम और आध्यात्मिकता के विषयों पर प्रकाश डालता है।
6. द होम एंड द वर्ल्ड (घरे-बैरे): एक उपन्यास जहां कविता कथा के साथ जुड़ती है, राष्ट्रवाद और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के विषयों की खोज करती है।
7. व्हेयर द माइंड इज़ विदाउट फियर: एक प्रसिद्ध कविता जो टैगोर के एक स्वतंत्र और प्रबुद्ध समाज के दृष्टिकोण को दर्शाती है।
ये टैगोर के व्यापक कार्य के कुछ उदाहरण मात्र हैं। उनकी कविता प्रेम और प्रकृति से लेकर आध्यात्मिकता और सामाजिक न्याय तक विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला को कवर करती है।
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