Alexander the Great | राजा पोरस को जंग में हराने के बाद भी सिकंदर को भारत से क्यों लौटना पड़ा था।

Alexander the Great | राजा पोरस को जंग में हराने के बाद भी सिकंदर को भारत से क्यों लौटना पड़ा था।

Alexander the Great जिसका जन्म 356 ईसा पूर्व में पेला, मैसेडोनिया में हुआ था, इतिहास के सबसे सफल सैन्य कमांडरों में से एक था। उन्हें अपने पिता, राजा फिलिप द्वितीय से सिंहासन विरासत में मिला और उन्होंने कम उम्र में ही अपनी विजय यात्रा शुरू कर दी। 334 ईसा पूर्व में, उन्होंने फ़ारसी साम्राज्य के खिलाफ अपना प्रसिद्ध अभियान शुरू किया, जिस पर उस समय डेरियस III का शासन था।

सिकंदर की सैन्य प्रतिभा के कारण उसे आश्चर्यजनक जीतें मिलीं, जिनमें ग्रैनिकस, इस्सस और गौगामेला की लड़ाइयाँ शामिल थीं। उसने तेजी से मिस्र सहित फ़ारसी साम्राज्य के अधिकांश हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया और तीन महाद्वीपों में अपने साम्राज्य का विस्तार करते हुए भारत की सीमाओं तक पहुँच गया।

रास्ते में, अलेक्जेंडर ने कई शहरों की स्थापना की, विशेष रूप से मिस्र में अलेक्जेंड्रिया, जो हेलेनिस्टिक संस्कृति का केंद्र बन गया। उन्होंने ग्रीक संस्कृति के प्रसार को भी बढ़ावा दिया, इसे अपने द्वारा जीते गए क्षेत्रों में स्थानीय रीति-रिवाजों के साथ मिश्रित किया। संस्कृतियों के इस संलयन को हेलेनिज्म के नाम से जाना जाता है।

अपनी उल्लेखनीय विजयों के बावजूद, सिकंदर का शासनकाल अल्पकालिक था। 323 ईसा पूर्व में बेबीलोन में, संभवतः बीमारी या जहर के कारण, 32 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद, उनका विशाल साम्राज्य उनके सेनापतियों द्वारा शासित कई राज्यों में विभाजित हो गया, जिन्हें डायडोची के नाम से जाना जाता था, जो हेलेनिस्टिक काल की शुरुआत का प्रतीक था। सिकंदर की विरासत उसके द्वारा जीते गए सभी देशों में ग्रीक भाषा, संस्कृति और विचारों के प्रसार के माध्यम से कायम रही।

ग्रीक दार्शनिक और इतिहासकार फ्लूटाश ने सिकंदर की शख्सियत का वर्णन करते हुए कहा था, उसका रंग गोरा और चेहरा लालिमा लिए हुआ था। सिकंदर का कद आम मेसेडोनिया की तुलना में छोटा था, लेकिन इसका युद्ध के मैदान में कोई असर नहीं दिखाई देता था। सिकंदर दाढ़ी नहीं रखता था. उसके गाल पतले थे, जबरा चौकोर था. और उसकी आंखों में गजब का दृढ़ संकल्प दिखाई देता था।

सिकंदर के बाल सुनहरे और घुंघराले थे। उसकी दोनों आँखों का रंग अलग अलग था। उसकी बाईं आंख स्लेटी थी और दाहिनी काली उसकी आंखों में इतनी ताक़त थी, कि सामने वाले को उसे देखने भर से दहशत हो जाती थी। सिकंदर हमेशा होमर की किताब ‘द इलियड ऑफ़ द कास्केट’ अपने साथ-साथ ले कर चलते थे। यहां तक कि सोते समय भी वो उसे अपने तकिए के नीचे रखते थे।

Plutarch सिकंदर की जीवनी The Life Of Alexander The Great में लिखते हैं। सिकंदर ने देह के आनंद में कभी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई जबकि दूसरे मामलों में उनसे साहसी और निडर कम लोग हुए होंगे बचपन से ही महिलाओं के प्रति उन्होंने सम्मान का भाव रखा। ये वो ज़माना था। जब गुलाम लड़‌कियों, रखैलों और यहां तक पत्नियों को निजी संपत्ति समझा जाता था।

सिकंदर की मां ओलंपिया सिकंद्र की लड़कियों में अरुचि से इतनी परेशान हो गईं कि उन्होंने उनमें विपरीत लिंग के प्रति रुचि पैदा करने के लिए एक सुंद्र वेश्या कैलिक्ज़ेना की सेवाएं ली लेकिन सिकंदर पर उसका कोई असर नहीं पड़ा। बाद में सिकंदर ने खुद स्वीकार किया कि सेक्स और नींद उन्हें हमेशा याद दिलाते थे कि उनका शरीर नाशवान है।

Alexander the Great | राजा पोरस को जंग में हराने के बाद भी सिकंदर को भारत से क्यों लौटना पड़ा था।

23 वर्ष के राजकुमार सिकंदर ने 334 ईसा पूर्व में मेसिडोनिया ग्रीस से दुनिया जीतने के अपने अभियान की शुरुआत की थी, सिकंदर की सेना में एक लाख सैनिक थे, जो 10000 मिल का रास्ता तय करते हुए ईरान होते हुए सिंधु नदी के तट पर पहुंचे थे। 326 इस पूर्व की शुरुआत में जब सिकंदर ईरान में था। उसने भारत के नजदीकी शहरों के राजाओं को संदेशवाहक भेज कर कहा था, कि वह उसका नियंत्रण स्वीकार कर ले जैसे ही सिकंदर कबूल की घाटी में पहुंचा इन राजाओं ने उससे मिलना शुरू कर दिया उनमें से एक था।

भारतीय नगर तक्षशिला के राजकुमार अमबी तक्षशिला सिकंदर की इतनी आओ भगत इसलिए कर रहा था। क्योंकि वह चाहता था। कि उसके दुश्मन पूरा से लड़ाई में सिकंदर उसका साथ दें मार्क्स कोर्टियस लिखते हैं। तक्षशिला ने सिकंदर के लिए जानबूझ कर भारत के द्वार खोल दिए। उसने सिकंदर की सेना को अनाज से लेकर 5000 भारतीय सैनिक और 65 हाथी भेंट किए. उनका युवा जनरल संद्रोकुप्तोस भी उनके साथ हो लिया।

Sikandar ने तक्षशिला में दो महीने बिताकर वहां के राजा के मेहमान नवाजी का आनंद लिया सिकंदर के जीवनी कार Philip Free Man अपनी किताब Alexander The Great में लिखते हैं। इस बिंदु पर सिकंदर ने अपनी सेना को दो भागों में विभाजित किया। उसने हेपेस्टियन के नेतृत्व में एक बड़ी सेना ख़ैबर दरें के पार भेज दी ताकि वो रास्ते में पड़ने वाले विद्रोही कबाइलियों को कुचल सके और इससे भी ज़रूरी जल्द से जल्द सिंधु नदी पर पहुंचकर एक पुल बना सकें ताकि Sikandar की सेना नदी पार कर सके।

इस रास्ते पर कई भारतीय राजा और बड़ी संख्या में इंजीनियर Sikandar की सेना के साथ चल रहे थे। सिकंदर एक घुमावदार रास्ता लेते हुए हिंदुकुश के पूर्व में गया ताकि वो उस तरफ़ रहने वाले कबाइलियों को अपने नियंत्रण में कर सकें। रास्ते में सिकंदर को उन राजाओं के जितने भी किले मिले जिन्होंने उसके सामने हथियार नहीं डाले थे।

उसने उन सब किलो पर कब्जा किया इसी अभियान के दौरान Sikandar की बाहों में एक तीर आकर लगा एक जगह Sikandar की सेना पर कबाड़ियों ने घात लगाकर हमला किया उस समय वह शाम को आराम करने के लिए शिविर लगा रहे थे। सिकंदर के सैनिकों ने पास की पहाड़ी पर चढ़कर अपनी जान बचाई जब हमलावरों को लगा कि सिकंदर बच निकले हैं।

Alexander The Great ने पहाड़ी से उतरकर उन पर अचानक जवाबी हमला बोल दिया उन लोगों ने अपने हथियार डाल दिए सिकंदर ने इस शर्त पर उनकी जान बक्शी कि वह उनकी सेना का हिस्सा बन जाए वह पहले तो उसके लिए राजी हो गए लेकिन जब कुछ लोगों ने वहां से भागने की कोशिश की तो सिकंदर ने उनको जान से मार देने का आदेश दे दिया। सिंधु नदी तक मार्च करने में सिकंदर की सेना को 20 दिन लगे.

वहां तक्षशिला के राजा ने सिंधु नदी पर नावों से पुल बनवाने में उसकी मदद की सिंधु नदी के तट पर रहने वाले लोगों को पता था, कि किस तरह नदी के बहाव के समानांतर लकड़ी के नावों को जोड़कर किस तरह नदी के पर पुल बनाया जाता है। Sikandar के जासूसों ने उसे खबर दी की पोरस के पास एक बड़ी सेना है। इसमें कई भीम गाए और हाथी भी शामिल है। सिकंदर का मानना था, कि वह पोरस की सेना को हरा सकता है, लेकिन मानसून शुरू हो जाने के कारण ऐसा करना आसान नहीं होगा।

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Sikandar की सेना को बारिश में लड़ने का तजुर्बा जरूर था, लेकिन उन्हें जबरदस्त गर्मी का भी सामना करना पड़ रहा था। वहां से उसने पोरस को संदेश भिजवाया कि वह अपनी सीमा पर आकर उनसे मिले और उसकी अधीनता स्वीकार कर ले और उसने जवाब दिया कि वह सिकंदर की अधीनता स्वीकार नहीं करेंगे लेकिन वह उनसे अपने राज्य की सीमा पर मिलने के लिए तैयार हो गए।

Sikandar और उसके सैनिक कई दिनों तक मार्च करते हुए झेलम नदी के पास पहुंचे पोरस की सेना झेलम के उस पार थी। सिकंदर ने नदी के उत्तरी किनारे पर शिविर लगाया वह उस जगह की तलाश में था। जहां से उसका नदी पार करना पोरस को दिखाई ना दे पोरस को झांसा देने के लिए उसने अपनी सेना को नदी के तट के काफी पीछे भेज दिया सिकंदर ने एक जगह अपने सैनिकों को नहीं रखा।

कभी वह पश्चिम की तरफ जाते तो कभी पूर्व की तरफ इस बीच उन्होंने नदी के किनारे पर अलाव जला लिए और काफी शोर मचाने लगे नदी के दूसरे तट पर मौजूद पोरस के सैनिक सिकंदर के सैनिकों के इधर-उधर जाने के आदी हो गए और उन्होंने उन पर कड़ी नजर रखनी बंद कर दी सिकंदर के विपरीत पोरस की सेना एक ही स्थान पर खड़ी रही क्योंकि सबसे आगे हाथियों को तैनात किया गया था, और उनको बार-बार इधर-उधर करना काफी मुश्किल काम था।

Sikandar ने यह भी आदेश दिया कि पास के खेतों से अनाज उसके शिविर तक पहुंचाया जाए पोरस के जासूसों द्वारा यह खबर दिए जाने पर पोरस ने इसका अर्थ यह लगाया कि सिकंदर का वहां मानसून खत्म होने तक रुकने का इरादा है। इस बीच वहां तेज आंधी और तूफान आया सिकंदर ने इसका फायदा उठाते हुए अपने सैनिकों से नदी पर करवा दी हालांकि इस प्रयास में बिजली गिरने से सिकंदर के कई सैनिकों की मौत भी हो गई पोरस के पक्ष में सिर्फ एक बात थी, कि उसकी सेना में काफी संख्या में हाथी थे।

लेकिन जब तक सिकंदर के सैनिकों को हाथियों से लड़ने का तरीका आ गया था। Sikandar के सैनिक हाथी को घेर लेते और उस पर भाला से हमला करते इस बीच एक तीरंदाज हाथी की आंख का निशान लेता जैसे ही हाथी की आंख में तीर लगता वह अनियंत्रित होकर इधर-उधर भागने लगता और अपने ही लोगों को कुचल डालता था।

Sikandar ने अपने सैनिकों को पोरस के सैनिकों के बाएं और दाएं भेज दिया, और कहा कि वह आगे जाकर पीछे से पोरस के सैनिकों पर हमला करें इस भीषण लड़ाई में दोनों तरफ के कई लोग मारे गए और बड़ी संख्या में लोग हताहत भी हुए, यह लड़ाई झेलम नदी के किनारे पंजाब में जलालपुर में हुई थी। सिकंदर अपने घोड़े पर सवार था तभी एक तीर घोड़े को लगा और उसने वही दम तोड़ दिया सिकंदर को अपने घोड़े की मौत पर दुख करने का भी समय नहीं मिला उसने दूसरा घोड़ा लिया और युद्ध करना जारी रखा।

जैसे ही पोरस के सैनिक दबाव में आए ट्रैक्टर्स की सैनिकों ने पीछे से आकर उन पर हमला बोल दिया और उनके पीछे भागने का रास्ता बंद कर दिया लेकिन एक हाथी पर सवार पोरस ने लड़ना जारी रखा। सिकंदर ने उसके साहस की प्रशंसा करते हुए उसके पास संदेश भिजवाया की अगर वह हथियार डाल दे तो उसकी जान बख्श दी जाएगी इस संदेश वाहक का नाम ऑफिस था। पोरस ने संदेशवाहक को अपने भाले से मारने की कोशिश की तब सिकंदर ने पोरस के पास एक दूसरा संदेश वाहक भेजा उसने पोरस को हथियार डालने के लिए मना लिया.

जब दोनों राजा मिले तो पोरस के हाथी ने घायल होते हुए भी घुटनों के बल बैठकर उसे नीचे उतरने में मदद की। सिकंदर पोरस के छह फ़ीट ऊंचे डीलडौल को देखकर बहुत प्रभावित हुआ, बंदी बनाने के बाद सिकंदर ने पोरस से पूछा कि उसके साथ किस तरह का सुलूक किया जाए. पोरस ने तुरंत जवाब दिया, ‘जो एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है।

सिकंदर ने पोरस को मरहम पट्टी करने के लिए युद्ध क्षेत्र से जाने की अनुमति दे दी कुछ दिनों बाद उसने पोरस को न सिर्फ उसे जीती हुई जमीन लौटा दी बल्कि आसपास की कुछ अतिरिक्त जमीन भी उसे सौंप दी। सिकंदर के सहायकों ने इसे पसंद नहीं किया वहीं पर सिकंदर की सेना ने अपने मारे गए सैनिकों का अंतिम संस्कार किया अपने मारे गए घोड़े की याद में सिकंदर ने युद्ध स्थल के पास एक नए शहर की स्थापना की और अपने घोड़े के नाम पर उसका नाम Bucephalus रखा जब तक पोरस लड़ने की स्थिति में था।

उसने Sikandar का जमकर मुकाबला किया सिकंदर इससे आगे भी बढ़कर गंगा के तट तक जाना चाहता था। लेकिन उसके पुराने सैनिक ने पूरी सेवा की तरफ से बोलते हुए उससे कहा तमाम खतरों के बीच इतने लंबे समय तक आपके साथ यहां तक आने से हमारा सम्मान बढ़ा है। लेकिन अब हम थक चुके हैं, और हमारी हिम्मत जवाब दे चुकी है।

इस दौरान हमारे कितने ही साथी खेत में रहे और जो बचे भी हैं, उनके शरीर पर इस अभियान के निशान है। उनके अपने कपड़े कब के तार-तार हो गए। अब उन्हें अपने कवच के नीचे ईरानी और भारतीय कपड़े पहनने पड़ रहे हैं। हम अपने माता पिता को देखना चाहते हैं और अपने बीवी बच्चों को फिर से गले लगाना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि हम सब वापस मेसीडोनिया चलें उसके बाद आप नई पीढ़ी के लोगों को लेकर एक बार फिर दूसरे अभियान पर निकल जाइएगा। जहां तक हमारा सवाल है हम इससे आगे नहीं जा सकते।

जैसे ही उस सैनिक ने बोलना समाप्त किया सभी सैनिकों ने ताली बजाकर उसका स्वागत किया लेकिन Alexander The Great को उसका ये कहना अच्छा नहीं लगा वह गुस्से में उठा और अपने टेंट की तरफ चला गया तीन दिन तक उसने अपनी किसी निकट सहयोगी से बात नहीं कि वह इंतजार करता रहा कि उसके सैनिक उसके पास आकर उसे मनाएंगे और अपने कहे पर माफी मांगे लेकिन इस बार उसके पास कोई नहीं आया।

आखिर सिकंदर को स्वीकार करना पड़ा की गंगा तक जाने का उसका सपना अब कभी पूरा नहीं हो सकेगा। उसने अपने सारे सैनिकों को जमा कर ऐलान किया वह अपने घर वापस जा रहे हैं. उसने पूर्व की तरफ एक उदास निगाह डाली और वापस अपने देश मेसिडोनिया की तरफ चल पड़ा।

Alexander the Great पारिवारिक विवरण!

सिकंदर महान का जन्म 356 ईसा पूर्व में मैसेडोनिया की प्राचीन राजधानी पेला में राजा फिलिप द्वितीय और रानी ओलंपियास के घर हुआ था। उनके पिता की कई शादियों से क्लियोपेट्रा नाम की एक बहन और कई सौतेले भाई-बहन थे। अलेक्जेंडर ने तीन बार शादी की: बैक्ट्रिया की रोक्साना, फारस की स्टेटिरा द्वितीय और फारस की पैरिसैटिस द्वितीय। रोक्साना से उनका एक बेटा अलेक्जेंडर चतुर्थ था, जो बाद में अलेक्जेंडर की मृत्यु के बाद एक राजनीतिक मोहरा बन गया।

सिकंदर बचपन से ही बहादुर और जिद्दी किस्म का शख्स था जो ठान लेता उसे करके ही मानता था। उसका यह स्वभाव देखते हुए पिता फिलिप्स ने उसे किसी मामूली शिक्षक के भरोसे छोड़ देना ठीक नहीं समझा इसलिए अपने समय के सबसे बड़े विद्वान अरस्तु को सिकंदर की शिक्षा का भार सौंपा 13 साल की उम्र से ही सिकंदर ने अरस्तु से शिक्षा लेना प्रारंभ किया अरस्तू ने सिकंदर को नीति शास्त्र और राजनीतिक विज्ञान की शिक्षा दी सिकंदर ने अरस्तु से यूनानी संस्कृति पर आधारित शिक्षा भी प्राप्त की इसीलिए उसे दर्शनशास्त्र पढ़ाया गया सभी शिक्षित यूनानियों की तरह उसे भी इलयार्ड और ओडिसी जैसी कविताएं लिखने वाले प्राचीन यूनानी कवि हमर पर महारत हासिल थी।

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